Saturday 24 December 2011



ना दौलत ना शोहरत, कि ख्वाहिश मुझे है
सियासत में मेरी है उसकी जो रेहमत
यह मंज़र भी अब कुछ सुहाना लगे है
गुलिस्तान भी तुमसे, गुल भी तुम्हारा
तेरे नाम सा दूजा ना कोई हमारा
मै फकीर हू मौला, ना फिकर है कोई
आया भी था खाली, जाऊंगा भी खाली
बस इतनी सी दुआ मांगे ये फकीरा
उनको दे देना जहान भर कि खुशिया
की सजदे में तेरी इबादत करुंगा
तू फलक से चलके आया जो मिलने
तेरा रुठ्ना भी सुफियाना लगे है
जो रुठा तू मुझसे, तो दुनिया भी रुठी
जो इश्क हुआ तो सारी दुनिया ये झूठी
तू पीर है मौला, फकीरों का औला
तेरी बंदगी में गुनगुनाता चलूँगा!! 


'अंजलि'

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