Monday 6 December 2010

आज फिर से कुछ याद अचानक आया ~

कभी जो छोड़ आये थे किसी गली में अपना खोया बचपन 
कहीं गुमसुम सा दिखता नज़र या 
मुह चिढ़ाता हुआ, छोटा अंगूठा दिखाता हुआ
टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में अपनी आँखें मूंदता नज़र आया !


जो गम के साये को छुआ तक ना था कभी 
वो सलोना सा, मिटटी का खिलोना सा बचपन 
मन के काले स्याही में आज रंगता हुआ,
फिर मुझे ही मेरा बचपन कोसता हुआ सा नज़र आया !

मुझे अपने पास बिठा कर, गोद में लिटा कर 
अपनी तोतली बोलियों में लोरियां सुनाता हुआ
बालों को सहला कर, गालों को पुचकार कर 

मेरी परेशानियों को सुनमुझे गले से लगाता हुआ नज़र आया !
हिम्मत करके पूछा,क्या फिर से मेरे दोस्त बनोगे 
मेरी  ऊँगली  झटककर उसने मुझपे गुस्सा दिखाया 
उस दिन खुद मेरा ही बचपन दर्पण बन कुछ बोल गया था 
कभी मैंने भी उसको छोड़ दिया था, ऐसा कह कुछ याद दिलाया
फिर दूर कहीं जाके पैर पटकता, सिसकिया भरता हुआ नज़र वो आया !

आज भी जब-जब सुनाई पड़ती हैउस बचपन की आवाज़ 
तब-तब हम फिर से जी उठते है, थोडा ही सही 
पर दिल खोल के हँसा करते है
कहीं दूर खड़ा मेरा वो बचपन, आवाज़ देता आज भी नज़र है आया !

आज फिर से कुछ याद अचानक आया
कभी रोया कभी गायाएक नए प्रश्न के साथ
जीवन के हरेक मोड़ पे खड़ा मैंने उसे पाया
आज फिर से वो याद आया, याद आया !!

   अंजलि सिंह 

   (6th dec 2010)    








Saturday 27 November 2010

उड़ती पतंग की डोर कट गयी..

ना  जाने  किस  छत  पे  जा  गिरा  होगा 
उस  पतंग  की  किस्मत  का  भी  क्या  कहना  ..
मिला  भी  तो पतंग बनाने वाले  को 
फिर से नया करके उसको  
बेच दिया कुछ सिक्को में, 
एक नयी पहचान एक नया रूप लेकर
फिर से वही पतंग अब नया होकर 
हवा में सर सर उड़ने लगा था 
छूता वो उँची इमारतों से ऊँचा उस गगन को 
झूम रहा हो, जैसे बारिश में मोर मगन हो 
नया जोश था उसमे और नई उमंग भी थी
अकेले ही रणभूमि में अब वो उतर चुक था 
एक एक करके उसने कितनो को काटा
पूछ  और बिनपूछ रंग बिरंगे प्यारे प्यारे  
मदमस्त पवन के झोके के साथ् उड़ने वाले हरेक पतंग को
अपना प्रतिद्वन्दी मान चुका था,
याद अचानक फिर उसको कुछ आ चुका था 
कि कभी उसको भी किसी ने काटा था 
कितने टुकरों में बांटा था
आभास जब हुंआ तो फुट-फुट कर रो पड़ा
भटक गया था जो कुछ  पल के लिये 
आज वही पतंग फिर से जुड़ गया 
उन्मुक्त गगन में बिन डोर के कहीं दूर उड़ गया !!
                                                     
                                                  अंजलि सिंह  

"यह सिर्फ धागे का त्यौहार नहीं"


 "यह   सिर्फ धागे का त्यौहार नहीं" 
 मिठाइयों की बौछार नहीं 
 यह रिश्ता है भाई बहन के प्यार का 
 जिसमे स्वार्थ  की  कोई  दीवार  नहीं 
 यह सिर्फ धागे का त्यौहार  नहीं !!

 बांधे डोरी रेशम की या सोने की 
 इस धागे के अनमोल प्यार को तोल कभी सकते नहीं 
 हीरा मोती सोना चांदी यह सबका कोई मोल नहीं   
न हो भाई का प्यार अगर तो प्यारा संसार नहीं 
 "यह सिर्फ धागे का त्यौहार नहीं" !!
                        
                                                अंजलि सिंह