Saturday 2 April 2011

एहसास


आज बहुत दिनो बाद जब कमरे कि खिड़की से बाहर झाँक कर देखा
तो दिखाई पड़ा एक पेड़..
जो कि आज बहुत स्थिर था , गुमसुम था गम्भीर था
पहले कभी ऐसे नहीं देखा
संवेदना के भाव में झुका हुआ सा
अपने नित्य कर्म के कर्म में रुका हुआ सा
हल्की स्वर में पुछा क्या हुआ, किस सोच में चुप-चाप खडे हो
क्या बात है जो आज ऐसे झुके पड़े हो
तुम्हारे कोमल पत्तों ने भी हिलना डुलना बंद है कर रक्खा,
सुबह-सुबह पत्तों की सरसराहट से जो कभी नींद थी मेरी खुलती
आज उसपे चुप्पी की एक लहर सी क्यों है दौड आई?
उस पेड़ ने भारी स्वर में बोला, इसमें मेरा कोई दोष नहीं है
मैं बहुत दिनों से हिला नहीं हूँ,
अपने लोगो से मिला नही हूँ 
हवा के स्पर्श के बिना मैं धीरे-धीरे टूट रहा हूँ 
अब ना जाने कब वो मुझमे फिर से समाएगा
कब् मेरे इन् कोमल पत्तों को फिर से सहलायेगा
कि अब समय नही ज्यादा मेरे पास
मृत्यु कि शय्या पर लेटा हुआ सा मेरा ये जीवन
कुछ ही उगता हुआ सूरज देख पायेगा
न कोई बच्चा, न बूढा न पशु पक्षी आते है
सब मुझे भावशुन्य, जटिल और निष्क्रिय बतलाते है
उसके अभाव में मेरा जीवन एक अभिशाप बन गया है
हवा अपना रुख मोड़ गया है, मुझे प्राण हीन करके छोड़ गया है

अंजलि सिंह

1 comment:

  1. kya baat h dear
    2mne ek tree ke pain ko feel krke usko bahut ache se explain kiya h..
    Great thinking..
    Like it..

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