कभी जो छोड़ आये थे किसी गली में अपना खोया बचपन
कहीं गुमसुम सा दिखता नज़र आया
मुह चिढ़ाता हुआ, छोटा अंगूठा दिखाता हुआ
टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में अपनी आँखें मूंदता नज़र आया !
कहीं गुमसुम सा दिखता नज़र आया
मुह चिढ़ाता हुआ, छोटा अंगूठा दिखाता हुआ
टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में अपनी आँखें मूंदता नज़र आया !
जो गम के साये को छुआ तक ना था कभी
वो सलोना सा, मिटटी का खिलोना सा बचपन
मन के काले स्याही में आज रंगता हुआ,
फिर मुझे ही मेरा बचपन कोसता हुआ सा नज़र आया !
मुझे अपने पास बिठा कर, गोद में लिटा कर
अपनी तोतली बोलियों में लोरियां सुनाता हुआ
बालों को सहला कर, गालों को पुचकार कर
मेरी परेशानियों को सुन, मुझे गले से लगाता हुआ नज़र आया !
हिम्मत करके पूछा,क्या फिर से मेरे दोस्त बनोगे ? मेरी ऊँगली झटककर उसने मुझपे गुस्सा दिखाया
उस दिन खुद मेरा ही बचपन दर्पण बन कुछ बोल गया था
कभी मैंने भी उसको छोड़ दिया था, ऐसा कह कुछ याद दिलाया
फिर दूर कहीं जाके पैर पटकता, सिसकिया भरता हुआ नज़र वो आया !
आज भी जब-जब सुनाई पड़ती है, उस बचपन की आवाज़
तब-तब हम फिर से जी उठते है, थोडा ही सही
पर दिल खोल के हँसा करते है
कहीं दूर खड़ा मेरा वो बचपन, आवाज़ देता आज भी नज़र है आया !
आज फिर से कुछ याद अचानक आया
कभी रोया कभी गाया, एक नए प्रश्न के साथ
जीवन के हरेक मोड़ पे खड़ा मैंने उसे पाया
आज फिर से वो याद आया, याद आया !!
अंजलि सिंह
(6th dec 2010)
2mne to muje bachpan me pahucha diya..
ReplyDeleteExcellent thought..
So swtee..