Friday, 23 November 2012

let me be the true one
let the inner self come out to see the new world
embrace if you don't judge me by my words
and accept the truth in its purest form
neither I will hate you 
nor I would expect you
to understand and respect,
what lies deep within my soul 
If you can be my ray of hope
I would surely be the shining sun on you
But if you be the dark clouds
would be happily waiting for the rain, even though
no matter, how thorny, rocky the path would be
real one would certainly give a helping hand to me
worst could be if no one turns around
but best would be to fearlessly
follow the battleground....!!





Anjali

If you~

If you can give, give
support and encouragement 
not monetary but an emotional support
not fake but a genuine encouragement 
because its above all and let oneself benefited with divine satisfaction !!

If you can speak, speak
only what is true 
not the words of the crowd, 
but the words of your soul
because manipulating the truth is not god !!

If you can see, see
the world with its unique unwithered beauty
not to find it in mere silver or diamond
but to bejeweled oneself with love, affection and kindness
because the more you give the more you get !!

If you can feel, feel
the pain of the mourning heart
not to see how loud they laugh publicly
but to acknowledge the idea of loneliness when none around
because blessed are whose who finds the universe resides in them.

If you can hear, hear
with patience, the unspoken and silent words
going missing in the illusive world
not to get fooled with the unreal smile
but to discover from the untold truths
because we ought to seek the imperished kingdom !!

If you can smell, smell
the sensitivity and emotions flowing to the mind
not to just use it for sensing pleasant or rotten
but to connect it with the supreme being
because, its necessary to propel further !!

Anjali

Saturday, 24 December 2011



ना दौलत ना शोहरत, कि ख्वाहिश मुझे है
सियासत में मेरी है उसकी जो रेहमत
यह मंज़र भी अब कुछ सुहाना लगे है
गुलिस्तान भी तुमसे, गुल भी तुम्हारा
तेरे नाम सा दूजा ना कोई हमारा
मै फकीर हू मौला, ना फिकर है कोई
आया भी था खाली, जाऊंगा भी खाली
बस इतनी सी दुआ मांगे ये फकीरा
उनको दे देना जहान भर कि खुशिया
की सजदे में तेरी इबादत करुंगा
तू फलक से चलके आया जो मिलने
तेरा रुठ्ना भी सुफियाना लगे है
जो रुठा तू मुझसे, तो दुनिया भी रुठी
जो इश्क हुआ तो सारी दुनिया ये झूठी
तू पीर है मौला, फकीरों का औला
तेरी बंदगी में गुनगुनाता चलूँगा!! 


'अंजलि'

Thursday, 8 December 2011


कभी दिलो के जज़बात, तो 
कभी अलफास कम पड़ते है, 
लबों पर आये जो तेरा नाम, 
गम को हसीं का नाम दिया करते है 
भुल के भी जो कभी भुला ना हो, 
हर वक़्त के दुआओं में तेरा फ़रियाद किया करते है~
सुबह की खुशनुमा ज़िन्दगी बनकर 
तेरे साँसों की पनाहों में जिया करते है  
ढलती शाम की सिन्दूरी में लिपटी 
और चाँद का श्रिंगार करके,
ये फिजा, तेरे आने का पैगाम दिया करते है ~
                                                       अंजलि सिंह 

Friday, 7 October 2011

वीर फ़ौजी~

तू सूर्य था तू सूर्य है
तू चाँद का गुरुर है
चमन में भी गगन में भी
तेरी ताप शक्ति खूब है
उठ खरा है जो अभी
प्रचंड मचा कहीं दूर है

तू शौर्य का प्रतिक है
तू वीर था तू वीर है
मुश्किलों में, जो हँसे
तुझमे वो ऐसी धीर है
सैकड़ों में एक तू
तू एक में वो सैकड़ों

नहीं तू सिर्फ एक का
तू मान है इस देश का
भुजा-शक्ति अपार है
तू शूरता का सार है
तूफान सा उफान है
समर्पण तेरा महान है

इस कर्मभूमि में खड़ा
तू सच्चा एक सपूत है
सबकी तू रक्षा करे
खुद अपनी नींद बेचकर
ऐ वीर! तेरे ऐसे निस्स्वार्थ पर
शत शत करे तुझे प्रणाम !!

अंजलि

Saturday, 24 September 2011

है क्यू मेरे अंतर्मन् में, एक प्रतिद्वन्द सा चलता
जब भी गले लगाना चाहूँ तुझे, क्यू ये आग उगलाता
सूरज कि गर्मी सी गर्मी
चांद सी तेरी थंडक है
फिर ना जाने किस और चला तू
वो तो तेरे अंदर है..

लहर समेटे, आशओं कि
कहाँ चला कब किसे पता
कि क्यू अन्तर्मुखी, कभी
बहर्मुखी खुद को सिद्ध करता तू,
तू ही तो है उसका दर्पण
भला व्यर्थ में चिन्ता करता क्यू

क्या लाये थे इस जीवन में
जो तुझको खोने कि शंका है
इस क्षण-भंगुर से जीवन पर
अभिमान सभी को होता है
लोभ, क्रोध, इर्षा, छल-कपट को
क्यू हार्दिक निमंत्रण देता है

ज़रा भीतर झाँक के देख सही
रावण-रुपी आज भी वास क्या करता है
हम भी नही सच् , सच् तुम भी नही
सत्य-सच्चिदानंद तो सिर्फ एक वही
कर दो समर्पण अंजलि भर कर
हृदय खोल श्रद्धा से सब दिए चलो !!

अंजली

Sunday, 3 July 2011

बूंदे बारिश की



बारिश कि निर्मल बूंदें
खिड़की से अंदर  झाँकती हुई 
याद दिला गयी बचपन की  
शैतानियों से भरे लड़कपन की, 
मचती थी होड़ कागज़ के नाव बनाने की 
लगती थी रेस सबसे आगे निकल जाने की  
कुछ गड्ढों में फस जाते, तो  
कुछ पानी में डूब जाते थे,
निकल पड़ते घरों के छत पर 
खेलते, खिलखिलाते, कुछ गाते गुनगुनाते  
हरे सावन से खेलता सा 
अठखेलियाँ कर बारिश को गले लगाते , 
मिटटी में सनकर ये बूँदें 
सबके मनन को है लुभाता .  
सोंधी सी खुशबू बिखेरे 
धरती की त्रिप्ती मिटाता 

जब-जब ये बूंदे बारिश की  
रिम-झिम रिम-झिम बरसती है 
तब-तब ये पागल मन मेरा 
अपने लोगों से मिलने की उत्साह को दुगुना करती है!!